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Friday, 5 September 2014

बदलते रंग

कभी विरानो मे भी महफिल लगती थी,

अब महफिलों में भी पूछता न कोई।

शमां जलती है तो सलाम करता  हर कोई,

बुझते चिरागों को पूछता ना कोई।

सितारा बुलन्दियों पर है जहां, दुनिया झुकती वहाँ,

डूबते सूरज को पूछता न कोई।

अपने चेहरों से परदा हटाता न कोई,

दुनिया को आईना दिखाता हर कोई।

साहिल पर बैठ तमाशा देखता हर कोई,

सन्दीप डूबते को हाथ देता न कोई।

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