कभी विरानो मे भी महफिल लगती थी,
अब महफिलों में भी पूछता न कोई।
शमां जलती है तो सलाम करता हर कोई,
बुझते चिरागों को पूछता ना कोई।
सितारा बुलन्दियों पर है जहां, दुनिया झुकती वहाँ,
डूबते सूरज को पूछता न कोई।
अपने चेहरों से परदा हटाता न कोई,
दुनिया को आईना दिखाता हर कोई।
साहिल पर बैठ तमाशा देखता हर कोई,
सन्दीप डूबते को हाथ देता न कोई।
अब महफिलों में भी पूछता न कोई।
शमां जलती है तो सलाम करता हर कोई,
बुझते चिरागों को पूछता ना कोई।
सितारा बुलन्दियों पर है जहां, दुनिया झुकती वहाँ,
डूबते सूरज को पूछता न कोई।
अपने चेहरों से परदा हटाता न कोई,
दुनिया को आईना दिखाता हर कोई।
साहिल पर बैठ तमाशा देखता हर कोई,
सन्दीप डूबते को हाथ देता न कोई।
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