करने कोआचमन,
धरा पर जो टपकती
ये ब़ूंदे कहां हैं थकती
अम्बरौ से जो बरसती
नदिया जहाँ है बहती
खिलखिल ये बरसती
मोती हो जैसे कोई
लहरौ का शिगांर करती
करने कोआचमन,
धरा पर जो टपकती
ये ब़ूंदे कहां हैं थकती
अम्बरौ से जो बरसती
नदियाँ जैसे है बहती
संग संग है चलती
आशा की ले पतवार
सागर मे खो है जाती
करने कोआचमन,
धरा पर जो टपकती
ये ब़ूंदे कहां हैं थकती
अम्बरौ से जो बरसती
गंवा कर सब कुछ अपना
मीलौ यह चली
धुप की तपिश में
अम्बरौ से फिर जा मिली
करने कोआचमन,
धरा पर जो टपकती
ये ब़ूंदे कहां हैं थकती
अम्बरौ से जो बरसती
संदीप खोसला
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