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Sunday, 3 August 2014

आखें


लाख इन्कार करो तुम,पर मैने जब भी देखा तेरी आख़ों मे अपनी तस्वीर देखी।

 कशिश आपकी आखों मे मैने देखी,खुबसुरती सारे जहाँ की सिमटती देखी,

तेरी आख़ों में मचलते साग़र में,मैने प्यार का जलजला देखा,

 प्रेम से भरी तेरी इन आखो मे,मैने पुरी मधुशाला देखी।

फिर कोइ क्यु न इश्क कर बैठे,जिसने इन आखो मे शरारत देखी।

आपनी आखों से तुझ को दिल मे बसा लिया मैने,

आखें झुका कर जब भी देखा मैने तेरी तस्वीर दिल में बसी देखी;

ये प्यार नही तो क्या है,कि खुद को तेरी आख़ों मे और तेरी तस्वीर क़ो दिल मे बसा देखा।


ए इश्क तुझ को सजदा,मैने उनकी आखों मे सचचाई देखी।



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