चाय की दुकान पर काम करता
एक नन्हा सा बच्चा,
फटेहाल नंगे पाँव,
बिखरे बाल , सुनी आखें ,
बचपन रौदता , रुठी जवानी की और बढता ,
गुनगुना रहा था,
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।
वो बेखबर कल,
आज की बुनियाद पर,
भविष्य के सुनहरे स्वपन संजोये,
गालियों की बौछार से बचता,
ख्वाबों की माला बिखरता देखता,
बेखबर फिर भी गुनगुना रहा था,
सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।
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