थोडी इसने थोडी उसने पिला दी,
कि थोडी थोडी फिर बहुत हो गईं,
यु तो बहकना न था कि बहकना अब मजबूरी हो गई,
यह मेरी खता नही कि थोडी थोडी फिर बहुत हो गई ।
न पीता तो न पीता
कि पीना अब मजबूरी हो गई,
कमबख्त होश मे रहने के लिये ये चीज अब जरूरी हो गई ।
वो चहकना , महकना और अब बहकना,
कि गुलशन मे चर्चा हो गई,
इक गुल जवां हो गया,
और इक जवां पशेमां हो गया।
वो रात बार बार याद आएगी ,
और पुछेगी कि ,
बरसो की बनी इमारत ,
क्यु पल मे ढेरी हो गई,
परदों का गिरना क्यु तेरी मजबुरी हो गईं,
अब सन्दीप कोई पूछेगा की ,
तु बतलाएगा ,
कि थोडी थोडी कयु बहुत हो गईं।
No comments:
Post a Comment