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Saturday 23 August 2014

थोडी थोडी


   
    थोडी इसने थोडी उसने पिला दी,

      कि थोडी थोडी फिर बहुत हो गईं,

     यु तो बहकना न था कि बहकना अब मजबूरी हो गई,
   
     यह  मेरी खता नही कि थोडी थोडी फिर बहुत हो गई ।
 
    न पीता तो न पीता

   कि पीना अब मजबूरी हो गई,

  कमबख्त होश मे रहने के लिये ये चीज अब जरूरी हो गई ।

 वो चहकना , महकना और अब बहकना,

 कि गुलशन मे चर्चा हो गई,

 इक गुल जवां हो गया,

और इक जवां पशेमां हो गया।

वो रात बार बार याद आएगी ,

और पुछेगी कि ,

बरसो की बनी इमारत ,

क्यु पल मे ढेरी हो गई,

परदों का गिरना क्यु तेरी मजबुरी हो गईं,

अब सन्दीप कोई पूछेगा की ,

तु बतलाएगा ,

कि थोडी थोडी कयु बहुत हो गईं।

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