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Saturday 24 January 2015

तनहाईया

चंद लम्हे तनहाइयों में क्या गुजारे मैने,

तनहाइयों को मुझसे इश्क हो गया।

इस कद्र घेर के बैठी है मुझको,

जैसे मैं आशिक कोई पुराना हो गया।

कुछ कहने न देती यह तनहाईया,

लबों पर मेरे,खामोशी पिरोने लगी।

हर कोई जो मेरे और आने को हुआ,

रास्ते उनको कही और लिए जाते,

तनहाइयों ने यु रिश्ता बनाया है मुझसे,

पत्थर भी बातें करने लगे, हवाएं गुनगुना  लगी।रातों को चीर हर सुबह,

अधंरो मे कही खोने लगी है।

तनहाइयों ने यु रचाया है मेला,

वीरानों मे अब शहनाई बजने लगी है।

ना मेहंदी रची, ना दुल्हन सजी,

सेज वीरानों मे सजा कर,

तनहाईया मुझको दुल्हा बनाने लगी है।

ना कोई छम छम, ना  पायल की झनकार,

बस पत्तो की सरसराहट हुई।

ऐ तनहाइयों तुम को सजदा,

जबसे रुबरु हुआ तुमसे,

तस्वीर चेहरों की मोहताज हुई।





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