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Tuesday 9 September 2014

नन्ही कलियाँ

  वो जो दो बहने थी,


 साईकिल पर चली आती थी,


खिलखिलाती   मुस्कुराती,


हंस के पास से निकल जाती थी,


याद बहुत आती है।


वो नन्ही कलियाँ,


गिर गिर के  संभलती,


साईकिल चलाती,


पास से युहीं निकल जाती थी,


वो जो दो बहने थी याद  बहुत आती है।


नन्हे कदमों से आगे बढती,


पहियों को घुमाती,


मुस्कुराती,


पास से युही निकल जाती,


वो जो दो बहने थी याद बहुत आती है।


साईकिल चलाने का उनको शौंक था।


नई नई उनकी उडान थी,


बहाने बना के घर से निकल आती थी।


वो जो दो बहने थी,


याद बहुत आती है।


वो प्रगति की नई परिभाषा,


धरती से आकाश को छुने की आशा,


वो जो दो बहने थी,


याद बहुत आती है।





      यह छोटी सी रचना मै अपनी दोनो बेटियों के नाम करता हुँ।जिन को किसी कारण  मै साइकिल नहीं दिला पाया।







  

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