मुडेर पर रोज जो चहचहाती थी,
वो चिडिया अब नजर नही आती।
नन्हे नन्हे पंखो से फडफडाती
रोज छत पर जो चली आती थी
वो चिडिया अब नजर नही आती।
दादी के किसे कहानियों मे
बच्चो को जो बहलाती थी
वो चिडिया अब नजर आती।
मासूम सी दिखने वाली खुशी,
आखों से दिल मे उतर जाती थी,
वो चिडिया अब नजर नही आती।
भोर के शोर मे खो गई जो,
वो चहचहाहट सुनाई नहीं देती।
वो चिडिया अब नजर नहीं आती।